मैं हर घड़ी क़दम - क़दम बदलता हूँ, युहीं,
यह वक़्त भी मुझे देखता हैं, युहीं।
मैं कल की बाँहों में हूँ खड़ा,
यह पल भी मुझे आख़िर रुला ही गया, युहीं।।
मैं हर शाम तेरे साथ क़दम - क़दम चलता हूँ, युहीं,
तेरी बातों को अपने अंदर समेटता हूँ, युहीं।
मैं हूँ, हर वक़्त तेरे दरवाज़े पर खड़ा,
ऐसे ही क़दम - क़दम मेरा दिन ढलता है, युहीं।।
मैं हर घड़ी क़दम - क़दम सोचता हूँ, युहीं,
अपने मन के सवालों के ज़वाब खोजता हूँ, युहीं।
मैं हूूँ, हर वक़्त तेरे साथ खड़ा,
ऐसे ही क़दम - क़दम तू चल साथ मेरे, युहीं।।
मैं हर घड़ी क़दम - क़दम बेखबर ही था, युहीं,
तेरे अल्फ़ाज़ों में, खुदको ढूंढता हूँ, युहीं।
मैं हूँ अपनी उस चाँद की रौशनी में खड़ा,
ऐसे ही क़दम - क़दम चलते आजा तू भी वही, युहीं।।
ऐसी कही बातें है, जो मुझे तुझसे कहनी है, युहीं,
शहर पर पढ़ रही, उस चाँद की रौशनी में चलते - चलते युहीं,
मैं हूँ उस कल की बाहों के इंतज़ार में खड़ा,
ऐसे ही क़दम - क़दम लिखते, कट जाये यह वक़्त युहीं।।
अंशुल सिंघल