पल पल तरसते थे जिस पल के लिए,
वो पल आया, एक पल के लिए,

वो पल,
बारिश के बाद महकती गाँव की मिट्टी जैसा,
झुण्ड में खेलते बच्चो की मुस्कराहट जैसा,
कई दिनों से पहाड़ चढ़ने के बाद, चोटी पर पहुँचने की खुशी जैसा,
और फिर उस चोटी पर, ढलते सूरज जैसा,
बेहत खूबसूरत ।।

मन कर रहा था जैसे,
उसे अपने सीने से जकड लू,
हमेशा के लिए अपने पास रख लू,
उसे अपनी जिंदगी की हर सुबह बना लू,

पर वो पल रुका भी तो, एक पल के लिए,
वो लोटता पल जैसे,
लम्बी छुट्टी के बाद, काम का लौट आना,
बसंत के बाद, गर्मी का लौट आना
Mid-2 के बाद, End Sem का लौट आना,
कुछ वैसा सा ही।।

सोचा था, उसे बिता एक हंसी पल बना लेंगे,
दोस्तों को हँसाने के लिए सही,
इस पल को अपनी जिंदगी का एक मज़ाक बना लेंगे।।

पर किसे पता था की यह पल फिर लौट कर आएगा,
जितना भी मैंने खुदको संभाला था,
वो सब एक ही क्षण में बिखर जाएगा,

पर मै अब खुदको सँभालने लगा हूँ,
जितनी भी गलतिया मैने करी है, उन्हें सुधारने में लगा हूँ,
मै घंटो खुदसे बातें करने लगा हूँ,
इतना ही नहीं, मै Guitar भी सिखने लगा हूँ,

कभी -कभी लगता है की बचपन के बाद यही सबसे अच्छा पल था,
जितने चींज़े बचपन से आज तक छूट गई थी,
उन्हें पूरा करने का यही सही वक़्त था,

पर में भूल गया था की,
पल पल तरसे थे जिस पल के लिए,
वो पल आया भी तो एक पल के लिए ही था।।

अंशुल सिंघल